हमारा संयोग अच्छा था कि नाव पूरी तरह से नहीं पलटी. जब हम उसमें से गिरे तो वह समन्दर से थोड़ा पानी भरते हुए फिर से सीधी होकर डगमगा रही थी. और मैं भी, क्योंकि मैंने नाव को नहीं छोड़ा , चंदू और रालसन दूर जा गिरे. रालसन की पतवार अब भी उसके हाथ में ही थी पर चंदू उसे गवां चुका था. उसकी पतवार हमारी पहुँच से दूर थी. चंदू ने तैरकर नाव को पकड़ लिया. रालसन मछली के अगले हमले के लिए इधर-उधर देखने लगा. लेकिन वह वापस न लौटी अब उसके हमले की आशंका कुछ कम हो गयी थी. इसलिए रालसन भी नाव के पास आ गया. हम तीनो ने मिलकर नाव को सही किया और बारी-बारी से उसपर चढ़ गए. नाव में अब भी पानी भरा था. जिसको मैं और चंदू अपने अंजुली के द्वारा बाहर निकालने लगे. रालसन अब भी मछली को ही देख रहा था. लेकिन ने मछली फिर से दूसरा हमला करना उचित न समझा. और अपनी हार स्वीकार कर समुद्र में समां गयी. काफी देर बाद (जबतक कि उसके दूसरे हमले की आशंका पूरी तरह से समाप्त न हो गयी) हमलोग अपनी नाव को अपनी मंजिल की तरफ बढाने के लिए फिर से कमर कसे. इस प्रकार हम मौत के मुह से अपनी जिन्दगी को खींच लाये थे. इस महत्वपूर्ण जीत से हमारे आत्मविश्वास...
मैं और मकसूद उस शराबी को देखने लगे. वह अपनी आखों को मींच रहा था और बार-बार पाईप को भी देख रहा था. मानो जैसे सपना देख रहा हो और जागने पर सपने में दिखा दृश्य अकाएक गायब हो गया हो. सुन्दरी उसके पास से चली गयी थी. वह भी अपनी दृष्टिभ्रम समझते हुए वापस जाने लगा, लेकिन बीच-बीच में पीछे मुड़कर देखता रहा जैसे किसी दुविधा में हो. “ओफ्फ ! बाल-बाल बचे”. – मैं लम्बी सांस छोड़ते हुए मकसूद से बोला बोला. “जल्दी चलो यहाँ से ...समय बहुत कम है”- मकसूद का ध्यान लक्ष्य की तरफ था. हम दीवाल के उस दरवाजे के पास थे. मकसूद ने दीवाल में ही लगे एक हरे रंग के बटन को दबाया. दबाते ही दरवाजा घिर्रर... की आवाज के साथ खुल गया. हम दरवाजे के पार निकाल आये. उस तरफ जहा दो तीन संकरी गलियां थी. इसमें कोई आम तौर पर आता-जाता नहीं था. जहाज के सभी कबाड़ इधर ही डाले जाते थे. लकड़ी और लोहे का कबाड़. इनको पार करते हुए हम वहां पहुंचे जहाँ रईसजादों के कमरे थे. ...