भूमंडलीय दौर में हिंदी सिनेमा के बदलते प्रतिमान


भूमंडलीकरण एक ऐसी परिघटना थी, जिसने पूरी दुनिया को अपनी मुट्ठी में दबोचकर सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से बदलने का प्रयास किया। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा, भूमंडलीकरण के आने के बाद देश की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में काफी बदलाव आया है। इस बदलाव को साहित्य, सिनेमा एवं अन्य विविध कलाओं में सहज ही महसूस किया जा सकता है। जहाँ तक हिंदी सिनेमा की बात है, तो आज पहले की अपेक्षा अधिक बोल्ड विषयों पर फिल्मों का निर्माण हो रहा है। यथा स्त्री-विमर्श, सहजीवन, समलैंगिकता, पुरूष स्ट्रीपर्स, सेक्स और विवाहेतर संबंध एवं प्यार की नई परिभाषा गढ़ती फिल्में इत्यादि। कहने का आशय यह नहीं है कि भूमंडलीकरण से पूर्व उपर्युक्त विषयों पर फिल्म निर्माण नहीं होता था, परंतु 1991 के पश्चात हिंदी सिनेमा में कथ्य और शिल्प के स्तरों पर प्रयोगधर्मिता बढ़ी है। दृष्टव्य है कि संचार माध्यमों में विशिष्ट स्थान रखने वाला सिनेमा, मात्र मनोरंजन का साधन न होकर जनमानस के वैचारिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक व सामाजिक जीवन को भी गहराई से प्रभावित करता हैं। चूंकि सिनेमा अपने निर्माण से लेकर प्रदर्शित होने तक पूंजी पर ही आश्रित रहता है, इसलिए पूंजीवादी  निगमों का उस पर पूर्ण नियंत्रण होता है। अत: सिनेमा का सामाजिक सरोकार संदिग्ध हालत में है।
इस बात को अधिक स्पष्टता से समझने के लिए भूमंडलीकरण के पश्चात प्रदर्शित फिल्मों के कथ्य पर ध्यान केंद्रित करने से स्पष्ट होता है कि हिंदी सिनेमा ने दर्शको को विलासितापूर्ण जीवन के दिवास्वप् दिखाकर बाजार में उपलब्ध वस्तुओं के अधिकाधिक उपभोग के लिए प्रेरित किया है। सिनेमा जैसे माध्यम पर नियंत्रण रखने वाली शक्तियाँ यह चाहती हैं कि उसके उपभोक्ता अपनी अभिरूचियों का विकास ऐसी दिशा में न करें, जो उनके वर्गीय हितों में बाधक है। इसलिए वह ऐसे कार्यक्रमों की प्रस्तुति को ज्यादा प्रोत्साहित करती हैं जो तत्कालीन रूप से प्रेक्षक को आनंद प्रदान करने वाले हों, जो उसके जीवन संबंधी मूल्यों को कम से कम आहत करें और जो उसे दुनिया के प्रति विवेकपूर्ण ढंग से सोचने का मौका न दे। भारत में भूमंडलीकरण के कारण न सिर्फ अमरीकी संस्कृति, जीवन-शैली, कार्य-शैली का प्रचार-प्रसार हुआ, वरन् उनकी जीवनशैली से उपजी समस्यओं का भी तेजी से प्रसार हुआ। भूमंडलीकरण ने जहां एक ओर किसान वर्ग, मजदूर वर्ग और निम्न आय वर्ग को मुसीबत में डाला है, वहीँ उसकी चमक-दमक में खोया रहने वाला उच्च मध्य वर्ग और मध्य वर्ग के लिए भी दूसरी तरह की समस्याएं पैदा की है। यथा अवसाद , आत्महत्या, एकाकीपन, संदेह, तनाव आदि। डेविड जी मेयर्स ने अमरीकी समाज की विडंबना पर अनुशासन करते हुए लिखा है कि अब हम अपनी आमदनी दोगुनी कर लेंगे, कॉलर आईडी होगा और हमारे पास कम से कम खुशियां होंगी, ज्यादा अवसाद होगा, ज्यादा से ज्यादा बिरखते सामाजिक संबंध होंगे। कम से कम सामुदायिक प्रतिबध्दता होगी। व्यावहारिक तौर पर कम से कम सामाजिक सुरक्षा होगी। ज्यादा अपराध होंगे। डेविड जी मेयर्स का उपर्युक्त वक्तव्य वर्तमान भारतीय समाज की निरंतर विद्रूप होती स्थिति पर एक सीमा तक सटीक बैठता है।
1991 के पश्चात भारत में जिस प्रकार बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रवेश एवं उनके द्वारा निवेश बढ़ा, उसका प्रत्यक्ष प्रभाव भारत के सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य पर पड़ा। विदेशी कंपनियों ने अपने प्रचार-प्रसार के लिए भारतीय सिनेमा एवं विज्ञापन जगत का हाथ थामा, जिसकी परिणति आज टेलीविजन प्रसारण पर स्पष्ट देखी जा सकती है। भारत में भूमंडलीकरण की विधिवत शुरूआत के बाद हिन्दी सिनेमा जगत में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष विदेशी सिनेमा बढ़ा, जिसका फिल्म के कथ्य से तकनीक पर सीधा प्रभाव पड़ा। सिनेमा में अप्रवासी भारतीयों द्वारा निवेश ने कथ्य को प्रभावित किया। वस्तुत: भूमंडलीकरण ने भारतीय समाज में अप्रवासी भारतीयों की छवि को बदला और जिसमें सिनेमा ने निर्णायक भूमिका निभाई। पूंजी का अतिशय प्रदर्शन एवं बाजार की प्रतिष्ठा, इन दोनो को सिनेमा ने अभिव्यक्ति कर जन-मानस को प्रभावित किया। रही-सही कमी टेलीविजन के उपग्रहीण चैनलों ने पूरी कर दी। भूमंडलीकरण के बाद हिन्दी सिनेमा में अप्रवासी भारतीयो के इर्द-गिर्द कहानियों को रचकर कई महत्वपूर्ण फिल्मों का निर्माण किया। यथा-परदेश, दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे, आ अब लौट चले, कल हो न हो, कभी खुशी कभी गम, कभी अलविदा न कहना, स्वदेश इत्यादि। इनके माध्यम से सिनेमा में व्याप्त उनकी पूर्व छवियों को तोड़ा गया और दर्शको को यह संदेश दिया गया कि अप्रवासी होकर भी अपने मूल्यों एवं संस्कृति को नहीं भूले हैं। यद्यपि इन फिल्मों में पूंजी का प्रदर्शन भी जमकर हुआ। विदेशी लोकेशंस के अति सुंदर दृश्य दिखाए गये। हालांकि भूमंडलीकरण के बाद भारतीय मध्य वर्ग के जीवन में बनावटी रंग-ढंग, चकम-दमक और कृत्रिमता ने व्यापक रूप से घुसपैठ की है, जिसका प्रतिबिम्ब हिन्दी सिनेमा में प्रत्यक्षत: देखा जा सकता है।



संपर्क : शोधार्थी , हिंदी विभाग , पांडिचेरी यूनिवर्सिटी पुद्दुचेरी -६०५०१ ४  

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ज्ञान्ती (कहानी) हिंदी अकादमी की पत्रिका इन्द्रप्रस्थ भारती के अगस्त 2016 के अंक में प्रकाशित

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