हम दोनों दुनियां से बेखबर आनंद के सागर में
गोते लगा रहे थे,और कभी कभी उड़न भी भर रहे थे. वह मुझे आनंद की चरम ऊँचाई पर ले जाना
चाहता था. मैं भी आखिरी उड़ान भर चुकी थी और मंजिल काफी नजदीक. चंदू की सांस, शांत
वातावरण में विघ्न उत्पन्न करने लगी थी. मेरे भी मुह से आनंदमयी चीख निकलते-निकलते
रह जाती. हम दोनों के जकड़न की कसावट बढ़ती चली जा रही थी. सहसा ! एक आवाज ने हमे
चौकन्ना कर दिया. मैं चंदू से अलग हो गयी.
“तुमने कुछ सुना ?”- मैं हांफते हुए
बोली.
“नहीं तो ! क्या हुआ ?” उसने हैरानी से
मेरी आँखों में झाँका.

एक बार फिर
आवाज आयी- छप-छप-छप, जैसे कोई डूब रहा हो. चंदू ने भी सुना. मैं डरने लगी. चंदू भी
चिंतित दिखा. हमने जल्दी से अपने-अपने कपड़ों को संतुलित किया. थोड़ी ही देर में फिर
से वही आवाज आयी. छप-छप-छप... लेकिन आवाज इस
बार हम लोगों के काफी नजदीक से आयी थी. हमने उस तरफ अपना रुख किया. हमने देखा कि वह
एक आदमी था जो अपना दोनों हाथ पानी के सतह पर तेजी से पीट रहा है. हमारा डर कुछ कम
हुआ. अबतक वह नाव पास आ गया था, उसने अपना हाथ हमारी तरफ बढाया. वह कुछ बोलना
चाहता था लेकिन आवाज हलक से बाहर नहीं आ रही थी.
हम डरते भी तो क्या करते ? हमने तो पहले
से ही सोच रखा था कि-‘मौत कभी भी आकर हमें अपने आगोस में ले सकती है.’ इसलिए हमारे
जेहन से डर अपने आप ही गायब होता चला गया. अब हम पूरी तरह अस्वस्त हो चुके थे कि
वह एक मनुष्य ही है जो अपने आपको मौत के मुह से निकालने के लिए हमारी मदद मांग रहा
था.
काफी मशक्कत के बाद वह हमारी इस छोटी से
नाव पर चढ़ पाया. वह बुरी तरह हांफ रहा था आते ही नाव पर पसर गया. काफी दूर से
तैरकर आने से पूरी तरह थका हुआ था. उसके सारे कपड़े भींगे हुए थे. वह अभी किसी तरह
से बोलने की हालत में नहीं था. इसलिए बस सोया रहा और हम उसे चुपचाप सामने बैठकर
देखते रहे.
कुछ देर आराम करने के बाद वह उठा और नाव
में लगे एक बक्से को खोला. जिसके बारे में हम दोनों में से किसी को पता नहीं था.
उसमे से उसने एक बड़ा सा कम्बल निकाला. हम उसे आश्चर्य से देख रहे थे. अब हमारे मन में
बस एक ही प्रश्न गुलाटियां ले रहा था कि- “कौन है यह ? जो हमारी इस नाव के बारे
में पूरी जानकारी रखता है ?” उसने उस बॉक्स से कुछ कपड़े भी निकाले और कम्बल को
लपेटकर अपने भीगे कपडे बदल लिया. इसके बाद बॉक्स को फिर से खोला और उसमे से कुछ
भुने हुए चने निकाले, हम दोनों को देखते वह हुए बोला-“लो चने खाओ” वह बोल भी सकता
है मैंने सोचा और हडबडाते हुए उसके हाथ से चने ले ली. चंदू भी लिया. आखिर भूख जो
लगी थी. अभी मै चने खाती ही कि चंदू बोल पड़ा-“अंकल ! आपने अपने बारे में नहीं
बताया ? आप कौन हैं ? कहाँ से आ रहे हैं ? और कैसे इस नाव के बारे में पूरी तरह से
जान रहे हैं ?”
“पहले तुम चने खाओ...काफी देर से भूखे
हो. मैं तुम्हे सब बताऊंगा कि-“मैं कौन हूँ ? कहाँ से आ रहा हूँ ? और क्या करता
हूँ” वह अधेड़ उम्र का आदमी था.
रात काफी बीत चुकी थी. हम चना खाने में मशगुल थे. अपनी स्थिति के बारे में
कुछ भी मालुम न था कि हमारी जीवन नैया कहाँ और किस दिशा में ले जा रही है. इसका
कारण यह भी यह भी था कि हमें हमारी नाव के सिवा कुछ भी दिखाई न दे रहा था. मैंने
महसूस किया ठंढ के मारे मेरे होठ काप रहे हैं. क्योंकि मेरे कपड़े तो पहले से ही
भीगे पड़े थे और दूसरे ठंडी हवा भी अब तेज हो गयी थी. जबतक मैं चंदू से चिपकी रही
तबतक तो ठीक था, लेकिन अलग होने के बाद मैं ठण्ड से सिकुड़ती चली जा रही थी. मैं उस
आदमी से कम्बल मांगने के बारे में सोच ही रही थी कि उसने मेरे उपर अपना कम्बल ओढा
दिया. कम्बल के सहारे ही मैंने अपने शरीर से भीगे कपडे अलग कर लिया और अपने नंगे
तन को कम्बल में लपेटकर उस छोटी सी नाव में लेट गयी. न जाने कब नींद ने मुझे अपने
आगोश में ले लिया.
जारी ..........
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