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(धारावाहिक उपन्यास, एपिसोड-6)

मैं और मकसूद उस शराबी को देखने लगे. वह अपनी आखों को मींच रहा था और बार-बार पाईप को भी देख रहा था. मानो जैसे सपना देख रहा हो और जागने पर सपने में दिखा दृश्य अकाएक गायब हो गया हो. सुन्दरी उसके पास से चली गयी थी. वह भी अपनी दृष्टिभ्रम समझते हुए वापस जाने लगा, लेकिन बीच-बीच में पीछे मुड़कर देखता रहा जैसे किसी दुविधा में हो.       
          “ओफ्फ ! बाल-बाल बचे”. – मैं लम्बी सांस छोड़ते हुए मकसूद से बोला बोला.
          “जल्दी चलो यहाँ से ...समय बहुत कम है”- मकसूद का ध्यान लक्ष्य की तरफ था.
हम दीवाल के उस दरवाजे के पास थे. मकसूद ने दीवाल में ही लगे एक हरे रंग के बटन को दबाया. दबाते ही दरवाजा घिर्रर... की आवाज के साथ खुल गया. हम दरवाजे के पार निकाल आये. उस तरफ जहा दो तीन संकरी गलियां थी. इसमें कोई आम तौर पर आता-जाता नहीं था. जहाज के सभी कबाड़ इधर ही डाले जाते थे. लकड़ी और लोहे का कबाड़. इनको पार करते हुए हम वहां पहुंचे जहाँ रईसजादों के कमरे थे.
           हमें इस तरह से आने का कोई विशेष औचित्य न था, लेकिन इस बार हम ऐसी चोरी करना चाहते थे. जैसे साप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. हम चाहते तो मैं दरवाजे से भी बाहर निकल सकते थे. लेकिन इस बार हमने नहीं किया, क्योंकि वहां पर सुरक्षा का कड़ा इंतजाम होता है. हर आदमी के बाहर आने और जाने पर गहन निगरानी रखी जाती थी. साथ ही यह भी देखा जाता था कि कौन कब और कितनी देर बाद तक बाहर रुकता है. यह सब नोट हो रहा था. वहां रजिस्टर पर समय के साथ-साथ दस्तखत भी करना पड़ता. बस हम इसी से बचना चाह रहे थे. क्योंकि हमें अपने कार्य को पूरा करने में ज्यादा समय का लगना स्वभाविक था. इसलिए हम सक के दायरे में आ सकते थे.
          मकसूद कमरा न.501 का दरवाजा खोलकर अन्दर जा चुका था. और मैं अभी भी उसके बगल वाले कमरे को खोलने का प्रयास कर रहा था. दिल की धड़कन बढ़ी हई थी. पास में होने वाली किसी भी आहट से शरीर का पूरा तार झनझना उठता. घुटनों में कंपन जारी था. और जहाज अपने तेज रफ्ग्तर से चली जा रही थी. सभी यात्री और जहाज के कर्मचारी मौज-मस्ती में डूबे हुए थे. हमारे पास मधुर संगीत के साथ-हमारे लूट खसोट में निकाल रही आवाज के अलावा पूरा सन्नाटा पसरा हुआ था. मैं अभी भी दरवाजा खोलने में उलझा हुआ था. कई चाभियों के प्रयोग करने के बाद आखिरकार मैं सफल हुआ. अभी मैं कमरे में घुसने ही वाला था कि तेज लाइटों का प्रकाश देखकर चौक पड़ा. इसलिए मैं कमरे के अंदर न जाकर जहाज के पीछे वाली चहारदीवारी के पास जा पहुंचा.
          आश्चर्य ! एक महान आश्चर्य. मैं दृश्य देखकर दांग रहा गया. कुछ मानव आकृतिया जहाज के पीछे-पीछे तेज रफ़्तार से दौड़ रही हैं.  कुछ तो छलांग लगाकर जहाज पर भी आ गयीं. वे कौन थे ? क्या थे ? मैं कुछ भी समझ नही पाया. केवल स्तब्ध खड़ा देखता रहा. इतने वे सब के सब जहाज पर चढ़ गए. दिल की धड़कन में तीव्रता आ गयी. डर के मारे पसीने से भींग गया. पैर ठहरने का नाम ही नहीं ले रहा था. फिर भी कुछ साहस बटोर कर मकसूद को बताना चाहा. तभी एक आकृति मेरे पास आकर रुकी. मेरा प्राण मुझसे अलग होने के लिए बेताब हो उठा. और रूखे गले से होती हुई एक आवाज निकली “दानव”.
          मैं उसे बहुत करीब से देखा. मैं पूरे यकीं से कह सकता हूँ, वह दानव ही था. भरी भरकम शरीर, मोटी-मोटी बलशाली भुजाएं, लम्बे पैर, सर पर लगा एक यन्त्र, जिससे तेज प्रकाश निकाल रहा था. खूंखार चेहरा, आँखों में तैरती खून की धाराएँ, और पूरे शरीर पर लगा स्टील का कवच. एक ड्रैगन की तरह. पर, वो ना तो ड्रैगन था और ना ही रोबोट. वह जो भी था पर एक ऐसा मानव था जिसमे विज्ञान का पूरा-पूरा समावेश था. क्योंकि वह अपने लम्बे पैरों में जूते के मानिंद एक ऐसा यन्त्र पहने हुए था जिससे समुद्र की सतह पर आसानी से दौड़ सकता था. वह जो भी रहा हो पर बीते युग के दैत्यों से कम न था. शायद इसी वजह से उसे देखते ही मेरे मुह से दानव शब्द निकाल पड़ा.
          इस प्रकार मैं उससे बचने के लिए सामने पड़ी नाव (जो जहाज से लटकी हुई थी) की रस्सी खोल दिया और समुद्र में कूद पड़ा. समुद्र में गिरते ही मैं उसकी गहराईयों में चला गया. और जबतक वहां से वापस लौटता, जहाज हमसे दूर निकल गयी थी और मुझे अँधेरे के सिवा कुछ भी दिखाई न दिया. तभी मैंने वियावान समुद्र पर छाई भयानक सन्नाटेदार काली रात में एक लड़की यानि कि तुम्हारी चिल्लाने की आवाज सुनी. इसप्रकार आवाज सुनकर तैरता हुआ उस आवाज की दिशा में चल पड़ा. और काफी मशक्कत के बाद अपने द्वारा खोली गयी नाव के पास आ पहुंचा जिस पर तुम दोनों को पाया. बाकी सब तम्हारे सामने है.  
          इस प्रकार मैं और चंदू रालसन की संघर्ष भरी कहानी सुनकर भावविभोर हो उठे और अपनी जिन्दगी से तुलना करने लगे. और साथ ही यह भी प्रतिज्ञा किये कि अंतिम साँस तक अपनी जिन्दगी के लिए हम संघर्ष करेंगे. प्रतिज्ञा बड़ी कठोर होती है, हमारे आँखों में आये हुए आंसू अपने आप ही सुख गए. और नशों में कसावट आ गयी.
          वास्तव में रालसन ने अपनी जीवन में दुनियादारी और परिस्थितियों से काफी संघर्ष किया था. शयद इसी कारण खुदा भी उसपे कही न्काही मेहरबान था. जिसके वजह से वह अभी तक जीवित था. क्योंकि कई बार यमराज उससे मिलने आ चुके थे और एक बार भी सफलता उसके हाथ नही लगी थी.
           हमारी जीवन नईया अपने पूरे वेग से सुरक्षित स्थान पर पहुचने के भागी चली जा रही थी. और हम तीनो बारी-बारी से उसे भागने के लिए पतवार चलाये जा रहे थे. जिन्दगी जीने की तम्मना अब हमारे दिल में है देखना है जोर कितना मौत की बाजुओं में है. यही दोनों पंक्ति अब हम तीनो के दिलो-दिमाग पर चक्करघिन्नी की तरह नाच रही थी. उधर मौत भी अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी. तभी तो एक समुद्री मछली जी-जान लगाकर हम लोगों के पीछे पड़ गयी. यैसा लगता मानो वह कई दिनों से भूखी हो और कोई भी शिकार इस बीच में उसे न मिला हो. वह तो चंदू की नजर अचानक उसपर पड़ गयी जिससे हम उसके पहले हमले से बच पाए. हुआ ये कि हम अपनी नाव को पुरे वेग से सुरक्षित स्थान पर पहुचने के लिए भगाए जा रहे थे कि तभी चंदू चिल्लाया अंकल वो देखो
आवाज सुनकर हम दोनों उस तरफ मुड़े कि वह मछली अपने जबड़े को खोलकर हमारे ऊपर छलांग लगा चुकी थी. एन वक्त पर रालसन का दिमाग काम क्र गया और उसने पतवार से उसपर वार कर दिया जिसके कारण मछली दूसरी तरफ जाकर समुद्र में गिर गयी. क्यों की वार करने से हमारी नाव पानी के ऊपर दूसरी तरफ सरक गयी. मौन उसी समय मछली के जबड़े को देखा कर चीख पड़ी और रालसन से चिपक गयी. मैं पुँरी तरह से डर गयी थी. चंदू भी कुछ डरा-डरा सा लगा. लेकिन अपने दर को मुठी में बंद करके रालसन का साथ दे रहा था. नैना तुम पतवार सम्हालो और कोसिस करो की नाव तेजी से चले. रालसन कुछ सोचते हुए बोला.
मैं नाव को एक ही पतवार से नव के वेग में तेजी बनाए रखने के लिए प्रयास करने लगी. मछली भी हमलोगों के ऊपर हमला दर हमला करती चली जा राही थी. लेकीन रालसन बुद्धिमानी और साहस के बलपर एक बार भी सफल न हो सकी.
नाव को तेजी से भागने के लिए मैं पतवार जल्दी-जल्दी चला रही थी. तभी मैंने देखा कि वह मछली हमारी नाव से आगे निकल गयी और काफी दूर निकल गयी. मैं रालसन को बताने के लिए मुड़ी. रालसन भी उसे ही देख रहा था और उसके हमले को रोकने की तयारी में लगा हुआ था. वह पतवार में एक चाकू बांध रहा था. शयद वह चाकू हमेशा अपने पास रखता था. मैं सोचने लगी की इतनी बड़ी मछली का भला इस छोटे छकू से क्या बिगड़ेगा ? सहसा वह मछली तेजी से लौटते हुए दिखी. मैं चिल्लाई अंकल वो आ रही है.
आने दो हम भी तैयार हैं’ –चंदू का जोश देखने लायक था.
रालसन अपने हाथ में चाकू बधा पतवार ले लिया. चंदू ने भी मेरे हाथ से पतवार ले लिया. और मुझे नाव के पिछले सिरे पर भेज दिया. उधर वह मछली भी अंतिम और सफल हमले के लिए पुरे वेग से हमारे ऊपर मुह फाड़े हुए झपटी. मैं उसे स्पस्ट रूप से देख प् रही थी करीब दस फिट लंबी और तीन फिट चौड़ी इतना बड़ा मुह कि मई या चंदू का सर आसानी से उसमे समां जाते. उसके दन्त भी काफी बड़े और नुकीले थे. उसका आक्रमण एक भूखे घायल शेर की भांति जो एक बार असफल होने पर पूरा जी जान लगा कर हमला करता है.

इधर रालसन और चंदू भी तैयार थे उसके हमले का सामना करने के लिए. वह एक निर्णायक हमला था शिकार को दबोचने के लिए वह टीक हमारी नाव के ऊपर तक आयी. वह बिलकुल भी नहीं छाती थी कि इस बार भी असफल रहे. वह अपने मंजिल को पाने ही वाली थी कि रालसन ने पतवार में बंधे चाकू से उसकी आँख पर निशाना साधा. वह जितने तेजी से आयी थी उससे कहीं ज्यादा तेजी से रालसन का पतवार चला. वह इसके लिए तैयार न थी. वह तड़प सी गयी और लक्ष्य को बीच में ही भूल गयी हम सभी नीचे बैठ गए. वह हमारी नाव के ऊपर गिरी और समुद्र के अन्दर समाती चली गयी . हमारी नाव भी उलट गयी. हम तीनो नाव के साथ ही समुद्र में गिर पड़े. 

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