जब
मेरी नींद खुली तो अँधेरा छंट गया था और सूर्य अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए
उतावला था. अनंत तक फैला समुद्र, स्पष्ट दिखाई दे रहा था. शांत समुद्र में हमारी
जीवन नैया भी शांत थी. और वे दोनों भी शांत थे. मने सोये हुए थे. वह आदमी, जिसके
सिर के आधे से ज्यादा बाल सफेद हो चुके थे. दाढ़ी में भी सफेद बालों का विकास जोरो
पर था. शक्ल-सूरत से एक भला इंसान लगा. लेकिन उसके खर्राटे की आवाज भयानक थी. मैं
उनके जागने के पहले ही अपने दैनिक क्रिया से निवृत हो गयी और अपने भीगे कपड़े
सुखाने लगी.
जब वे जगे तो सूर्य काफी उपर चढ़ आया था.
दूर-दूर तक केवल जल ही जल फैला हुआ था. हम कहाँ थे ? किस दिशा में थे ? कुछ मालूम
न था. हमारी शुरूआती दिशा का ज्ञान भी अबतक मिट चुका था. इस लिए हमें हमें
दिशाभ्रम हुआ और सूर्य का उदय पश्चिम दिशा की तरफ होता हुआ नजर आया.
मेरे कपडे सुख गए थे.जल्दी से मैंने उसे
पहन लिया. वे दोनों भी कम्बल की आड़ लेकर दैनिक क्रिया से निवृत हुए. उसके बाद हम
रात का बचा हुआ चना एक साथ बैठकर खाने लगे.
प्यास बुझाने के लिए समुद्र का खारा पानी आँख मूंदकर पी गए. जब कुछ राहत
हुई तो हम एक सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए सोचने लगे. इस लिए बारी-बारी से नाव
की पतवार चलाने लगे. नाव तेज रफ़्तार से आगे बढ़ने लगी. हम फिर से अपने-अपने घर आना
चाहते थे इस लिए भारत की स्थिति को भांपते हुए उस दिशा में चलने लगे. हमारे अनुशार
हम उत्तर दिशा में जा रहे थे.
चलते-चलते काफी देर हो चुकी थी और अबतक
हम तीनों एक दूसरे परिचित भी हो चुके थे. मैंने उनको अपने बारे बिस्तार पूर्वक
बताया. अब चंदू भी अपने बारे में बताया.
उसके अनुशार-
जब उसने होस
सम्हाला तब से वह अनाथालय में था. वहीँ अनाथालय के कर्मचारियों से पता चला कि वह
एक सड़क के किनारे साड़ी में लिपटा पड़ा रो रहा था. उसके शरीर पर चीटियों का जमावड़ा
था. राह चलते किसी भले मानुष की नजर उसपे पड़ी तो वह उसे उठाकर घर लाया. लेकिन पहले
से उसके सात लड़के लड़कियां होने के कारण वह उसे अनाथालय पहुंचा दिया. इस प्रकार
उसका बचपन अनाथालय में ही गुजरा. जब वह लगभग पांच वर्ष का रहा होगा तभी कलकत्ता के
एक बड़े व्यापारी ने उसे गोद ले लिया. उस व्यापारी की और कोई औलाद न थी. इसलिए उन
लोगों ने उसे बहुत लाड-प्यार से पाला. और उसके लिए कभी भी किसी चीज की कमी न होने
दिया.
उनका अमेरिका में भी बड़ा कारोबार था इस
लिए वह उसे भी अपने साथ अमेरिका लिए जा रहे थे. ताकि उसे उच्च कोटि की
शिक्षा-दीक्षा मिल सके और वह बड़ा होकर उनके कारोबार को सम्हाल सके. वे उसे हर
प्रकार का सुख देते थे. उसे माँ-बाप जैसा प्यार मिलता था उनसे. लेकिन उसे अपनों के
न होने का दुःख उसके रोम-रोम में रचा बसा था. तभी तो वह कभी-कभी न जाने किस दुनिया
में खो जाता. शायद उसके निर्भिकं और साहसी होने का कारण भी यही था. वह इतना निडर
था कि गला तलवार की नोक पर हो तब भी वह आगे बढने से न रुके. वैसे जबसे मैं उसके
नजदीक आयी वह काफी बदला-बदला सा नजर आने लगा था. ऐसा मैंने कभी-कभी उसके हाव-भाव
को देखकर महसूस किया. इसका एहसास मुझे तब हुआ जब उसने अपने बारे में बताया.
नाव अपनी तेज रफ़्तार से चली जा रही थी.
भूख से हमारा बुरा हाल था. पेट में चूहे कूद रहे थे. कल से लेकर अबतक थोड़े से चने
के अलावा कुछ भी नहीं खाए थे हम. हमारे पास था भी क्या ? जो खाते. हम दिन रहते एक
सुरक्षित स्थान अर्थात किसी भी किनारे पर पहुँच जाना चाहते थे. इसी जूनून ने हमें
भूख का एहसास न होने दिया. इसके अलावा हम तीनो के परिचय की कथा की भी बड़ी अहम्
भूमिका रही. हम तीनो की कहानी में बड़ी रोचकता थी जिसे एक-दूसरे से सुनने में बड़ा
मजा आ रहा था. और यह स्वभाविक ही है कि जब किसी काम में मजा आने लगे तो भूख-प्यास
अपने-आप ही नौ-दो-ग्यारह हो जाती है.
जारी ..........
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