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(धारावाहिक उपन्यास, एपिसोड-5)

हम दोनों का परिचय जानने के बाद उस आदमी ने अपना परिचय इस प्रकार दिया – उसके अनुसार :
उसका नाम रालसन था और वह पेशे से एक चोर था. उसका ठिकाना मल्लाहों की एक बस्ती में था. उसकी अपनी एक निजी एक मकान थी लेकिन शायद ही वह उसमे कभी रहा हो. वैसे उस मकान का सुख भोगने वाला उसका और कोई अपना नहीं था. अभी उसके बाल-बच्चे भी नहीं हुए थे कि उसकी पत्नी उसे अकेला छोड़कर परलोक सिधार गयी. वह अपने जीवन काल में बहुत सारा धन इकठ्ठा किया लेकिन कभी भी वह उसका भौतिक सुख नहीं भोग पाया. इतना धन होने के बावजूद भी वह अपने पेशे से बाज न आया. उसे चोरी करने में ही परम शुख की अनुभूति होती. उसने बताया कि शायद वह इस नशे का आदी हो गया था. उसने यह नशा अपनी मर्जी से नहीं बल्कि हालात से मजबूर होकर पकड़ा था. उसका दावा था कि उसके जगह पर यदि संसार का कोई भी इंसान होता तो शायद यही करता. क्योकि पैसे के कारण ही जमीदारों ने उसकी माँ को सरेआम बाजार में नंगा करके चाबुक से पीट-पीट कर मार डाला था. इतना ही नहीं उन जमीदारो ने उससे बचपन से लेकर कई वर्षों तक अपने यहाँ गुलामों की तरह रखा और उससे मजदूरी कराते रहे. एक दिन मौका पाकर वह वहां से भाग निकला. अब वह एक नौजवान था भटकते-भटकते कोलकाता पहुंचा. जहाँ उसकी मुलाकात मकसूद से हुई. जो औवल दर्जे का चोर था. उसी ने उसके रग-रग में चोरी का नशा भर दिया था. कुछ दिन तक तो वह उसका चेला बना रहा लेकिन जल्द ही वह बराबर का हिस्सेदार बन गया. वे दोनों साथ-साथ चोरियां करते और कुल लुटे हुए धन को आपस में बराबर-बराबर बाँट लेते.
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          उसने बताया कि- कलकत्ता से किसी दुसरे देश को जाने वाली जहाज में वे अपना टिकट बुक करा लेते और जहाज जब बीच समुद्र तक पहुँचती तो आधी रात में जागकर उस जहाज में खूब जमकर चोरी करते. इसप्रकार जब वे वापस लौटते तो इनके पास काफी धन होता. इसी नियत से इस बार भी ये दोनों इस जहाज में चले थे. लेकिन इस बार इनकी तैयारी कुछ खास थी. क्योंकि ये जानते थे कि यह जहाज अबतक की सबसे बड़ी जहाज थी. और जाहिर था कि इसके यात्री भी वाही लोग होंगे जिनके पास कभी धन की कमी नहीं रहती.
          उनके इस काम में जहाज के कर्मचारी भी भागीदार थे इसलिए उन्हें उनका भरपूर सहयोग मिलता. यह उनके आमदनी का सबसे अच्छा और बिना मेहनत का तरीका था. रालसन और मकसूद कर्मचारियों की मदद से इस यात्रा के प्रारंभ होने के दस दिन पहले से ही अपने तैयारी में जुट गए थे. अपनी इस तैयारी की योजना में उन्होंने जहाज में लटकी इस छोटी सी नाव को भी चुना था. जिसमे कई गुप्त बॉक्स इस प्रकार बनाये गए थे जिसे कोई भी गैर आदमी देखे तो यह अंदाजा न लगा सके कि इसमें कुछ रखा होगा. जबकि यह सबके नजर के सामने ही था. शायद इसी कारण मैं और चंदू भी इस रहस्य को नहीं जान पाए.
           रालसन के अनुसार-उस रात जहाज के हाल में एक बहुत बड़ी पार्टी का आयोजन था. जिसमे सब लोगों को जाना अनिवार्य था. हाल पूरी तरह से रंगीन लाइटों से जगमगा रहा था. एक तरफ आर्केस्ट्रा चल रहा था जिसके धुन पर अर्धनग्न सुंदरियां नाच रही थीं. हम दोनों भी महफ़िल में शामिल, मौके की तलास में थे. आज का दिन हमारे अनुकूल था रईसजादों की रईसी मिटाने के लिए.         
           हॉल में रईसजादों की ऐयासी का नजारा अपने चरम पर था. वे एक हाथ में शराब लिए नाचती हुई सुन्दरियों को पकड़कर मस्त मगन, अनाप-सनाप बकते हुए झूम रहे थे. कुल मिलकर एक रंगीन शमा,एक रंगीन रात थी. हाल में रोशनी तारो की तरह चमक रही थी. हम छोटे लोग भी उसी में इधर-उधर भटक रहे थे. हम भी झुमने का नाटक करते हुए मस्त थे, लेकिन किनारे-किनारे ही एक दर्शक दीर्घा में.
          हम दोनों पूरी तरह से सतर्क चौकन्ने कौए की तरह चेष्टा लिए हाल से जल्द ही निकाल जाने के लिए बेताब थे. भाग्य ने हमारा भरपूर साथ दिया और मौका मिलते ही हम दोनों स्टेज के पीछे चले गए. आर्केस्टा वाले स्टेज के पीछे जहाँ एक बड़े परदे का आड़ था. वहीँ एक गुप्त रास्ता मिला हाल से बाहर निकलने के लिए . जो सबके लिए प्रवेश निषेध जैसा था.
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          अब हमें किसी के नजरों में न आकर वहां पहुचना था. क्योकि अगर उस समय हमे कोई वहां देख लेता तो बात बिगड़ सकती थी. इसलिए हम दोनों फूंक-फूंकक्र कदम रख रहे थे. देखते-देखते ही मकसूद स्टेज के छत पर पहुँच गया और छत में लगे पाईप, जिसके नीचे आर्केस्टा वालों का चेंजिग रूम था’ से सरकते हुए दरवाजे के पास पहुँच गया. टीक यही क्रिया मैं भी दोहरा रहा था कि तभी एक शराबी ने मुझे देख लिया. मैं पाईप से चिपक गया. वह लड़खड़ाते हुए मेरे पास आने लगा. मैं अब भी उसी तरह दुबका रहा. कि सहसा भाग्य ने साथ दिया और एक सुन्दरी आकर उससे लिपट गयी. और उसके होठों को चूमने लगी. इससे उसका ध्यान मेरी तरफ से जैसे ही हटा मैं जल्दी से उस दरवाजे के पास पहुँच गया जहा मकसूद था. 

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