हम दोनों दुनियां से बेखबर आनंद के सागर में गोते लगा रहे थे,और कभी कभी उड़न भी भर रहे थे. वह मुझे आनंद की चरम ऊँचाई पर ले जाना चाहता था. मैं भी आखिरी उड़ान भर चुकी थी और मंजिल काफी नजदीक. चंदू की सांस, शांत वातावरण में विघ्न उत्पन्न करने लगी थी. मेरे भी मुह से आनंदमयी चीख निकलते-निकलते रह जाती. हम दोनों के जकड़न की कसावट बढ़ती चली जा रही थी. सहसा ! एक आवाज ने हमे चौकन्ना कर दिया. मैं चंदू से अलग हो गयी. “तुमने कुछ सुना ?”- मैं हांफते हुए बोली. “नहीं तो ! क्या हुआ ?” उसने हैरानी से मेरी आँखों में झाँका. एक बार फिर आवाज आयी- छप-छप-छप, जैसे कोई डूब रहा हो. चंदू ने भी सुना. मैं डरने लगी. चंदू भी चिंतित दिखा. हमने जल्दी से अपने-अपने कपड़ों को संतुलित किया. थोड़ी ही देर में फिर से वही आवाज आयी. छप-छप-छप... लेकिन आवाज इस बार हम लोगों के काफी नजदीक से आयी थी. हमने उस तरफ अपना रुख किया. हमने देखा कि वह एक आदमी था जो अपना दोनों हाथ पानी ...