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आम के आम गुठलियों के दाम रेल मंत्रालय के नाम

देश को आर्थिक विकास की चिंता के साथ-साथ पर्यावरण के बारे में भी चिंता की आवश्यकता है. अभी तक हम विज्ञान और तकनीकि के सहारे विकास के आर्थिक पक्ष पर ही नजर गड़ाए बैठे हैं, तो सरकार की नीति और योजनायें भी किसी न किसी रूप में विकास के आर्थिक पक्ष की ही पक्षधर रही हैं. नतीजतन आज हम उसका परिणाम देख रहे हैं. सूखा, बाढ़ और पीने के पानी का संकट जैसी समस्याएं निरंतर विकराल रूप धारण करती जा रही हैं. आज हम एक ऐसी नगरीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं जिसमें लोग तेजी से गाँव से शहर की तरफ पलायन कर रहे हैं. इसका एक ही प्रमुख कारण हैं, वह है शहरों में आसानी से उपलब्ध भौतिक सुख-सुविधा. लेकिन इस सुख-सुविधा को प्राप्त करने की आपाधापी में हम यह निरंतर भूलते जा रहे हैं कि पर्यावरण बदल रहा है और यह बदलाव सिर्फ सामान्य बदलाव नहीं है. यह प्रकृति का इंसानों पर आक्रमण करने की बेचैनी है. जिसका परिणाम बहुत भयानक और त्रासदीपूर्ण होगा. अतः सरकार और विकास की रूप-रेखा तैयार करने वालों को यह सोचना होगा, कि भविष्य में कभी भी आने वाली भयानक त्रासदी से कैसे निपटा जाय. इसके लिए उन्हे विचार-विमर्श, राष्ट्रीय स्तर पर सं...

कवरेज क्षेत्र के बाहर कि दुनियां में आपका स्वागत है.

जिसने पूरी दुनिया को अपनी मुट्ठी में दबोचकर सामाजिक , आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से बदलने का प्रयास किया। इससे भारत भी अछूता नहीं रहा , भूमंडलीकरण के आने के बाद देश की आर्थिक , सामाजिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में काफी बदलाव आया है। इस बदलाव को साहित्य , सिनेमा एवं अन्य विविध कलाओं में सहज ही महसूस किया जा सकता है। जहाँ तक हिंदी सिनेमा की बात है , तो आज पहले की अपेक्षा अधिक बोल्ड विषयों पर फिल्मों का निर्माण हो रहा है। यथा स्त्री-विमर्श , सहजीवन , समलैंगिकता , पुरूष स्ट्रीपर्स , सेक्स और विवाहेतर संबंध एवं प्यार की नई परिभाषा गढ़ती फिल्में इत्यादि। कहने का आशय यह नहीं है कि भूमंडलीकरण से पूर्व उपर्युक्त विषयों पर फिल्म निर्माण नहीं होता था , परंतु 1991 के पश्चात हिंदी सिनेमा में कथ्य और शिल्प के स्तरों पर प्रयोगधर्मिता बढ़ी है। दृष्टव्य है कि संचार माध्यमों में विशिष्ट स्थान रखने वाला सिनेमा , मात्र मनोरंजन का साधन न होकर जनमानस के वैचारिक , सांस्कृतिक , राजनीतिक व सामाजिक जीवन को भी गहराई से प्रभावित करता हैं। चूंकि सिनेमा अपने निर्माण से लेकर प्रदर्शित होने तक पूंजी पर ही आश्रित रहता है...